बुधवार, 18 अगस्त 2010

इतिहास ने खून चूसने वालो का नही खून बहाने वालो का साथ दिया है

विषधरो ने फन फैला रखे है
और उनके फन फैलते फैलते धीरे धीरे इतने बड़े हो गए है
की उन्हें छोड़कर पूरा समाज उन फनो की छत्रछाया में आ गया है
फन के बाहर कुछ बचता भी तों नही है
फन ही धरती बन गए है फन ही समुद्र और आकाश भी
घुटन होने पर भी समाज के कुछ जीव जिनमे कुछ गर्म लाल खून है
केवल छटपटा पाते है, भागते है संघर्ष करते है
पर एक फन से निकल कर दूसरे फन तक ही पहुच पाते है 
धीरे धीरे फनो ने विष उगलने और खून चूसने की मात्रा बढ़ा दी है
लोगो पर उनका कसाव और दबाव भी बढ़ता जा रहा है
इस दबाव और कसाव के कारण कुछ लाल खून वाले जीव एकत्र होने लगे है
और अपने लाल खून तथा अपनी गरमी को मिला कर एक लाल समुद्र
अथवा एक ज्वालामुखी बना देने का प्रयास करने लगे है
जिस दिन यह ज्वालामुखी तैयार हो जायेगा
उस दिन निश्चित ही सारे फन कांपने लगेगे  
जिस दिन यह फूटेगा फन भी जलने लगेगे
फनो की जगह राख दिखलाई पड़ेगी जो खाद का काम देगी
और सारा गर्म खून उसे सींचेगा
तब जो जुताई होगी और फिर जो फसल तैयार होगी
उसे हमेशा की तरह केवल फन नही सारे जीव खायेंगे
तब समाज के जीवो में अपना खून होगा गर्म खून
अपनी छत्रछाया होगी अपनी दिशाए तथा अपने फैलाव होंगे
ज्वालामुखी तैयार करने की प्रक्रिया में मैंने भी अपने को भट्ठी में झोक दिया है
सिंचाई के लिए अपने खून का कतरा कतरा निचोडना शुरू कर दिया है 
सबके साथ मेरा भी खून रंग जरूर लायेगा
क्योकि इतिहास ने खून चूसने वालो का नही खून बहाने वालो का साथ दिया है .

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