शनिवार, 14 अगस्त 2010

अकेला था तू अकेला है ये क्या जीवन का खेला रे

अकेला था तू अकेला है ये क्या जीवन का खेला रे
सुख देखे दुःख देखे और मिलना बिछड़ना झेला रे

रोता रोता तू आया था सब लोगो के मन भाया था
तेरी किलकारी जब गूंजी सारा कुनबा चिलाया था
तेरा बचपन क्या आया सबके मन को हरसाया था
बड़ी मिन्नतें की सबने तब घर में  बचपन आया था

कैसे अच्छे दिन थे वे भी कैसा बचपन भी  खेला रे

अब देख तू बड़ा हो गया अपने पाव पे खड़ा हो गया
बहुत बुराई दिखती तुझमे काहे को तू बड़ा हो गया
ये बोल कहाँ से लाया किसने है तुझको सिखलाया
इससे तों निर्पूत भले थे  छाती पर आ खड़ा हो गया


तुझ जैसे बेटे से अच्छा तों  रहता  बहुत  अकेला रे

देकर खून  किया है पैदा अभी कब तक और पिएगा
जीवन में तों बहुत घाव है तू अपयश से उन्हें सिएगा
श्राप तुझे है कीड़े  मकोड़े से बदतर भी जीवन होगा
या ओ कर जो मै कहता हूँ तब अपना जीवन जिएगा

निकल और ले जा बच्चे वच्चे लगा ले अपना ठेला रे

जीवन भी क्या चीज है भैया कैसे  कैसे रंग  दिखाए
नहीं है पैसा बस शोहरत है आटा दाल कहा से आये
दवा, दूध और फीस नहीं है बच्चो को कैसे बहलाए
रोने गाने से क्या होगा आओ कुछ पुरसार्थ जगाये

बस संबल थी जीवनसाथी और साथ में  अपने बच्चे
कुछ भी हो सब खुश रहते थे ये थे अपने साथी सच्चे
आखिर अपने दिन भी आये फिर बोले ये सारे  बच्चे
संग रहेंगे मिलजुलकर ही आये है अब ये दिन अच्छे


लेकिन जीवन गूढ़ बहुत है  गूढ़ है इसका झमेला   रे

आना था ना कोई आया कई आफते घर में आ गयी
संघर्षो को बस हम भाए  और मुसीबते हमें भा गयी
सारे  मिल कर खड़े हो गए घर कि शक्ति बचाए कैसे
संघर्षो का अंत नहीं था जीवन में फिर शाम आ गयी

बच्चो का संसार लुट गया और  मै हो गया अकेला रे

अब बच्चो को एक एक कर  उनकी  राह दिखाना
जीवन में कोई  दुःख  ना आये  ऐसा मार्ग बनाना है
दुःख ही  देखे  है इन सब ने उपरवाले अब  ना  देना
दुःख हो मेरे और सुख इनके  इन्हें नहीं मुरझाना है

जीवन इसी का नाम है साथी सब है पर तू अकेला रे

याद आ गयी अब जीवन कि कहते थे कि संग रहेंगे
जो भी होगा खट्टा मीठा हाथ मिला कर संग सहेंगे
छोड़ा हमको बीच राह में थी उनको कितनी तकलीफे
क्या ना सहा और साथ दिया हम शिकायत नहीं करेंगे
                                                                                                                                                                    
सुख दुःख में  इस जीवन की गाड़ी को बहुत  धकेला रे
कितना छुपाऊ  कुछ  ना  बताऊ  फिर मै   हूँ अकेला रे
ये ही सच  ये ही  जीवन  है ये ही  जीवन   का मेला  रे
आते  सब यहाँ  अकेले  है  रहता  सब  यहाँ  अकेला रे

किसका दुःख कौन पहचाने जो भोगे बस ओ ही जाने
जान लो जल्दी ये सारे सच फिर  ना  कोई  झमेला रे

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें