शनिवार, 14 अगस्त 2010

अचानक काले बादलों ने

अचानक काले बदलो ने अँधेरे का अहसास करा दिया
पढ़ा था[ भूरा बादल पानी लाये ,काला बादल जी डराए ]
गलत हो गयी कहावत  ,काले बादल बरसे खूब बरसे
तन  तों नहीं भीगा लेकिन मन भीग गया अन्दर तक
जब मन भीगता है तों कुछ यादे आ खड़ी होती है सामने
उमस महसूस होने लगती है तन में भी और मन में भी
तन की उमस के इलाज तों मौजूद है कई इस दुनिया में 
लेकिन मन की उमस पर  शायद कोई शोध नहीं हुआ
ये बादल नहीं आते है तब भी डराते है हर किसी  को
आते है तों पहले मन हर्साता है ,कभी कभी तरसाता है
और जब यही बादल फट पड़ते  है जरूरत से  ज्यादा
तों वही जो हाथ जोड़ कर मांग रहे थे ईश्वर से बादल
केवल वे ही नहीं बाकी लोग भी भूल जाते है  जीवन 
ये पानी जो जरूरत है जीवन को ,खेत को ,पशुओ को
वही पानी दुश्मन बन जाता है खेत ,पशु और जीवन का
चारो ओर तबाही का मंजर ,भयावह बहाव और त्रासदी
कितना मुश्किल है कुछ लोगो का जीवन, और आधार
पानी नहीं बरसा तों भूखा रहना खूब बरसा तों भूखा रहना
एक तरफ कुआ एक तरफ खाई ,कैसी इन्होने दुनिया पाई
पानी बरसा लेखक ने कुछ लिखा और मैंने लिखी  कविता 
प्रशासन ने बनाई रिपोर्ट कितना पैसा बटना है यानी चटना है
नेताओ का दौरा, मंत्री मुख्यमंती का हवाई दौरा या हवाखोरी
कुछ पैकेट फेंकते हुए फोटो खिचवाना ,अखबारों में छपवाना
शासन ने दौरा,विपक्ष ने बयान, प्रशासन ने चट्ट,हो गया सब
अब किसान को सोचना है की जीना है या करना आत्महत्या 
मजदूर को सोचना है गाव में रहे या शहर जाये कुछ  कमाए
पढ़ा लिखा जवान मेहनत नहीं अपराध से रोटी की जुगाड़ में है 
जिसकी बेटी की होनी थी शादी ,बीमार माँ और पत्नी का इलाज
जिए या परिवार को जहर खिलाये फिर खुद मर जाये क्या करे
अखबारों और टी वी चैनलों के लिए तों मिल गया काफी मसाला
सोचना नहीं कहा से समाचार लाये क्या क्या  चौबीस घंटे दिखाए
कही ना कही लोग डूब रहे होंगे और ये उनसे पूछ रहे होंगे कैसे है क्या हाल है
इस बाढ़ में शासन की विफलता,प्रशासन का भ्रस्टाचार या विपक्ष की चाल है
डूबने वाले से सवाल मत पूछो ,उसे बचाओ ,हो सके तों उसे  रोटी दिलवाओ
हर साल ऐसा ही होता है, कुछ बाढ़ देख पिकनिक मनाते है ,कुछ कविता लिखते है
कुछ का धंधा और चंदा, किसी की राजनीति, कुछ बह जाते है कुछ भूख से मरते है
फ़िलहाल मेरा शहर बाढ़ से महफूज है दूसरे डूबे तों डूबे ,वे मेरे कुछ भी नहीं लगते
मै आवाज लगा देता हूँ अगर दिन है तों चाय ,पकोड़ी ,रात है तों मौसम का बहाना
थोडा सा नमकीन , बर्फ,ठंडा पानी, सोडा.विस्की की बोतल और गिलास ले आना 
और फिर दो पैग के बाद यादो में डूब जाना ,लिखना ,मिटाना ,आंसू छुपाना
जी हाँ काले बादल क्या आये ,क्या क्या ले आये ,क्या क्या बताये ,क्या क्या छुपाये
अभी तों ए सी कमरे में बैठ खिड़की से बाहर देख कर मन भीग रहा है तन भीग रहा है| .

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