कुछ लोगों के शरीर ही नही
बल्कि आत्मा तक पर
इतने बाण लग चुके होते है
जमाने के
कि
कोई और बाण
लगने की जगह ही
नही बची होती है ।
अगर कोई चलेगा
तो
बाण पर ही लगेगा
और
उसे और गहरे तक
पैबस्त ही कर देगा न
घाव
और
कितना गहरा हो जाता है
ऐसे में
और
दर्द भी कितना बढ़ जाता है
उस बाण से ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
गुरुवार, 3 जनवरी 2019
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