कितना भयानक
कुहरा हो जाता है
अकसर आजकल
कुछ भी नही दीखता
थोडा सा भी आगे
पर
ये कुहरा तो
इस मौसम मे होता है
थोडे दिन
मेरे जीवन मे तो
पता नही कब से
कुहरा है
कुछ भी स्पष्ट नही
अगले पल का भी
इस कुहरे से
जीवन का कुहरा
ज्यादा भयानक होता है
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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