बस रँगते जाओ
अपनी सोच ,
अपने कर्म ,
अपनी नाक़ामियाँ,
अपनी अयोग्यता
और
दृष्टिहीनता
और
उसके नीचे सुलगाते जाओ
आग नफरत की ,
दंगो की ,चीखों की ।
बस हो गया शासन
और
मिल गया चुनांव को राशन
रंग ही लोकतन्त्र ,
रंग ही संविधान
रंग ही इंसानियत
रंग ही रोटी
रंग ही कपड़ा
और
रंग ही मकान
और क्या ?
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ... ❤
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आभार
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